Wednesday, November 28, 2007

"एड्स"

कल तक वो फूल जैसा..
महका सबके साथ में...
जिन्दगी कम होती उसकी..
रेत जैसे हाथ में....

उसकी आखों में थे देखे...
हमने तो सपने कई..
टूट कर बिखरे हैं सब ही....
बदले से हालत में...

बातें जो करता था रहता...
चाँद तारों की सदा...
छत पे जाने को है तरसा...
शख्स वो हर रात में...

कितने अरसे से वो मेरे...
संग ही में था रहा....
खट्टे-मीठे कितने किस्से...
यादों की बारात में...

आँखों में तो बस नमी है...
आशा न कोई बची है...
"एड्स" का रोगी बना वो...
सब इसी आघात में...

सांत्वना कैसी भी दें तो...
वो अधूरी सी लगे....
सोच न पाएं कहें क्या...
अपनी उस मुलाकात में....

माँ को देखूं मैं जो उसकी...
दिल मेरा टूटा ही जाये...
पत्नी की वो करून चीखें...
गूंजती जज्बात में....

तूफ़ान में पतवार टूटी...
मांझी की हिम्मत भी छूटी...
जिन्दगी की नाव डोले...
गम की इस बरसात में...

"एड्स" ने लाया है "दीपक"...
जिन्दगी को कटघरे में....
दोष उसका कोई दे तो....
दोष उसकी जात में....

कल तक वो फूल जैसा..
महका सबके साथ में...
जिन्दगी कम होती उसकी..
रेत जैसे हाथ में......................

.................. Deepak

1 comment:

Keerti Vaidya said...

rab karey dost jal theek ho jaye...

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