दीपक भी माटी का ...
मैं भी हूँ माटी का ...
मेरी तो माटी बस....
तेरे से साथी हैं
जिन संग मैं हँसता हूँ....
बातें मैं करता हूँ......
कविता के बोलों में...
खोया मैं रहता हूँ...
जीते तो सब ही हैं...
सार्थक उसका जीवन ...
दूजे कि खातिर जो....
करता खुद को अर्पण...
जीवन ये मेरा भी...
सबको समर्पित है...
सबके मैं काम आऊं...
मन मेरा अर्पित है...
दर्द उसको कहते हैं ..
खुद के लिए है जो...
मन कि "ख़ुशी" है वो...
सबके लिए है जो...
ईश्वर से विनती ये...
मेरी है दिल से...
जीवन सफल कर ....
मिलता मुश्किल से...
सबको रोशन कर दूं...
मेरी ये इच्छा है...
सबके संग मैं खुश हूँ...
मेरी ये इच्छा है...
सबकी ही आखों मैं...
तारे सा चमकूं...
बिरहन के दिल को मैं...
खुशिओं से भर दूं...
पथिकों कि राहें मैं...
उजला सा कर दूं...
दीनों कि कुटिया को ...
रोशन मैं कर दूं....
"दीपक" जब कहते सब ..
दीपक मैं बन पाऊँ...
याद सब मुझको रखें...
ऐसा कुछ कर जाऊँ...
सा-आदर ....
दीपक
...
2 comments:
may all ur wishes wich u hav tried to express through dis poem cums true
बेहद पावन भाव... आपकी लेखनी आपके निर्मल व्यक्तित्व की प्रतिछाया सी है...!
ढ़ेरों शुभकामनाएं!
Post a Comment