दो सहेलियाँ..
एक लिखती है...मन से..
एक रंगती है......रंग से..
हर शब्द, हर चित्र..
हर अहसास..हर भाव
हर द्वंद्व, हर संबन्ध..
हर राग, हर द्वेष..
हर व्यक्त और शेष..
...
एक लिखती है...मन से..
एक रंगती है......रंग से..
हर शब्द, हर चित्र..
हर अहसास..हर भाव
हर द्वंद्व, हर संबन्ध..
हर राग, हर द्वेष..
हर व्यक्त और शेष..
...
जीवन की..
अच्छाईयाँ, बुराईयाँ..
सबलता, दुर्बलता..
राग और रंग..
साथ और संग..
परिधि और विस्तार..
स्वप्न और साकार..
टूटे से पंख...
सीप और शँख..
गीत और नज़म..
जाम और वज़म..
अनकही, अनसुनी..
सुलझी, अनसुलझी..
रहस्य सी बातें..
जगती सी रातें..
तृष्णा, मृगतृष्णा..
ईमरोज, अमृता..
विन्सी, मोनालिसा..
'लेखनी' और 'तूलिका'..
दो तन, एक मन,
एक स्वप्न, एक चिन्तन..
नजम, गीत,भीत, चित्र,
गजल, प्रीत..हार, जीत..
तरुणाई, अरुणाई..
सार, क्षार..
गूँज..अनुगूँज..
आह..दर्द..
गर्म.. सर्द..
दो जिस्म, एक जान..
दो साँस, एक अहसास..
दो परिवेश, एक वेश..
दो गीत, एक संगीत..
दो तार, एक सितार..
दो रंग, एक संबन्ध..
दो राग, एक अनुराग..
दो माध्यम, एक अभिव्यक्ति
दो सहेलियाँ, एक सी..
एक लिखती है..
मन की तरंग..
एक रंगती है...
जीवन के रंग..
दो सहेलियाँ
'लेखनी'' और ''तूलिका''..
...........
मैंने अभिव्यक्ति के दो माध्यमों को एक कविता के माध्यम से परिभाषित करने का प्रयास किया है..कृप्या अपनी अमूल्य राय से मुझे अवगत करें...
शुभ अपरान्ह...शूभ दिवस..
सादर...
दीपक शुक्ल..
अच्छाईयाँ, बुराईयाँ..
सबलता, दुर्बलता..
राग और रंग..
साथ और संग..
परिधि और विस्तार..
स्वप्न और साकार..
टूटे से पंख...
सीप और शँख..
गीत और नज़म..
जाम और वज़म..
अनकही, अनसुनी..
सुलझी, अनसुलझी..
रहस्य सी बातें..
जगती सी रातें..
तृष्णा, मृगतृष्णा..
ईमरोज, अमृता..
विन्सी, मोनालिसा..
'लेखनी' और 'तूलिका'..
दो तन, एक मन,
एक स्वप्न, एक चिन्तन..
नजम, गीत,भीत, चित्र,
गजल, प्रीत..हार, जीत..
तरुणाई, अरुणाई..
सार, क्षार..
गूँज..अनुगूँज..
आह..दर्द..
गर्म.. सर्द..
दो जिस्म, एक जान..
दो साँस, एक अहसास..
दो परिवेश, एक वेश..
दो गीत, एक संगीत..
दो तार, एक सितार..
दो रंग, एक संबन्ध..
दो राग, एक अनुराग..
दो माध्यम, एक अभिव्यक्ति
दो सहेलियाँ, एक सी..
एक लिखती है..
मन की तरंग..
एक रंगती है...
जीवन के रंग..
दो सहेलियाँ
'लेखनी'' और ''तूलिका''..
...........
मैंने अभिव्यक्ति के दो माध्यमों को एक कविता के माध्यम से परिभाषित करने का प्रयास किया है..कृप्या अपनी अमूल्य राय से मुझे अवगत करें...
शुभ अपरान्ह...शूभ दिवस..
सादर...
दीपक शुक्ल..
8 comments:
वाह क्या बात है ...शब्दों के केनवास पर खूब रंग सजाये हैं आपने
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ...शब्दों और रंगों के माध्यम से भावों की अभिव्यक्ति का जीवंत चित्रण
लेखनी और तूलिका के माध्यम से जीवन के सार को पेश कर दिया है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....
जाने कैसे आपका ब्लॉग अनदेखा रहा इन दिनों...
अनु
achchi abhivyakti
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे। बहुत ही अच्छी रचना।
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