बचपन के किस्सों में ..
राजा थे रानी थी...
अपनी भी बूढी सी..
दादी थीं नानी थीं...
चन्दा को हम मामा..
कहकर बुलाते थे..
छत पर हम तारों संग...
बातें बनाते थे...
आँगन में अपने भी...
जमघट सा लगता था..
दादी और बाबा संग...
मेला सा जुटता था...
तितली के पीछे भी...
हम भगा करते थे...
पत्थर से आमों को...
तोडा हम करते थे...
डोरों पतंगों में...
उलझे से रहते थे...
टूटे खिलोने में...
खोये से रहते थे...
खेतों किनारे हम...
साईकिल चलाते थे...
चिडियों को छत पर हम...
दाना खिलाते थे...
प्यारी सी एक लड़की...
संग खेला करती थी...
छोटी सी बातों पर....
वो रोया करती थी....
सीधी थी फिर भी हम...
उसको सताते थे...
जितना वो चिढ़ती थी..
उतना चिढ़आते थे...
इमली और जामुन हम..
संग बीना करते थे...
एक इमली की खातिर...
आपस मैं लड़ते थे...
गावों के मेलों में...
हम जब भी जाते थे...
टिक्की, बतासे, जलेबी...
हम खाते थे....
झूला हिन्डोंले में...
हम झूला करते थे...
अक्सर खिलोनों पर....
हम मचला करते थे...
हम सबसे मिलते थे...
हँसते हंसाते थे...
अक्सर हम शामों में...
हुडदंग मचाते थे...
कागज के रॉकेट को...
हम तो उडाते थे...
बारिश के पानी मैं...
नावें चलते थे...
छोटी सी दुनिया थी...
छोटे से सपने थे...
हम तो बस तब सिमटे...
घर में ही अपने थे...
अब न वो बचपन है ...
न वो कहानी...
अब न वो किस्से ....
न बातें पुरानी....
अपनी तो इच्छा ये...
लौटें दिन जीवन के....
जाकर जो आये न...
दिन फिर वो "बचपन" के ...
इक इक कर सब छूटे ....
हमसे तो अब तक...
यादों में बसते सब ....
भूले न अब तक ...
स-आदर......दीपक....
4 comments:
A very nice poem wich helped me in relivin my childhood
kitni pyaari kavita hai ,,,bilkul bachho sa bholapan hai in shabdon mei .......
वाह!
कितना सुन्दर जीवंत वर्णन कर दिया आप ने..पुरानी यादों को संजोये रखना कितना सुहाना लगता है.बहुत अपनी सी लगी कविता .
@ Alpana ji..
Bachpan ek madhur ahsaas hai..
Jeevan bhar ye ek meethi yaad bankar rulati rahti hai..
Thanks
DEEPAK..
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