हम तो खोये हैं उनकी यादों में...
रात दिन अब यूं ही निकलते हैं...
भीड़ में गुम न कहीं हो जाएँ....
अपनी ऊँगली पकड़ के चलते हैं....
दिल से दिल की तो राह होती ....
दिल को दिल की ही चाह होती है...
जब से हंस के तुम हमसे बोली हो...
जाने क्यों लोग हमसे जलते हैं...
दिल ये चाहे की तुम ही मिल जाओ...
मेरे घर चांदनी सी खिल जाओ...
रूप तेरा तो बस हमारा हो....
ये हंसी ख्वाब दिल में पलते हैं....
थोडा दामन जो तुमने लहराया...
देख के चाँद भी है शरमाया....
अपनी हालत बयां करें क्या हम...
हम तो बस मोम से पिघलते हैं....
तेरे चेहरे पे जो हंसी देखी...
तेरे दिल की है वो ख़ुशी देखी...
हम तो मदहोश से हुए "दीपक".....
रात भर करवटें बदलते हैं.....
तुझको भूलूं कभी ये बात आयी....
बिना मौसम के है बरसात आयी ...
अब तो रोके भी नहीं रुकते हैं...
अश्क खुद आप ही छलकते हैं .....
हम तो काबिल नहीं हैं तेरे पर....
जाने क्यों चाहते हैं तुझको ही...
ये भी बेबसी सी है मेरी.....
हम तो खुद आप ही को छलते हैं....
अब तो सावन का नूर फैला है...
फूल खिलते हैं दिल की बगिया में....
ये "मोहब्बत" है ख़ुशी का आलम....
अब तो मौसम यूं ही बदलते हैं......
सा-आदर....
दीपक
कविता भावों के झरने सी... अंतर्मन मैं बहती है... कविता "दीपक" की "ज्योति" सी... उज्जवल सबको करती है...
Sunday, December 16, 2007
Monday, December 10, 2007
ग़ज़ल....
हमको तो अपने दिल में, बिठाकर तो देखिये....
दिल को हमारे दिल से, मिलाकर तो देखिए...
तुमको मिलेंगे फूल ही, बस फूल राह में...
इक गुलमोहर आँगन में, लगाकर तो देखिए....
चन्दा के नूर सा तेरा, चेहरा चमक उठे...
दिल कि ख़ुशी से खुद को, सजाकर तो देखिए...
कितना सकून मिलता, तुम जो देखना चाहो...
गम को किसी से आप, बताकर तो देखिए...
जागते हुए भी ख्वाब, जो तुम देखना चाहो...
आँखों में हमको आप, बसाकर तो देखिये ....
संग तेरे चल पड़ेंगे, कई लोग राह में....
हमराह उनको आप, बनाकर तो देखिए.....
शर्मा के हंसीं लगती हो, तुम ये कभी देखा....
आइना अपने सामने, लाकर तो देखिए.....
रोशन सी हो उठेगी, तेरी दुनिया अजब सी....
"दीपक" को अपने दिल में, जलाकर तो देखिए....
कागज़ के फूल भी, महक उठेंगे, अगर....
हाथों में उनको आप, सहलाकर तो देखिए.....
हमको तो अपने दिल में, बिठा कर तो देखिए...
दिल को हमारे दिल से, मिला कर तो देखिए...
.............................................................................
सादर,
दीपक
दिल को हमारे दिल से, मिलाकर तो देखिए...
तुमको मिलेंगे फूल ही, बस फूल राह में...
इक गुलमोहर आँगन में, लगाकर तो देखिए....
चन्दा के नूर सा तेरा, चेहरा चमक उठे...
दिल कि ख़ुशी से खुद को, सजाकर तो देखिए...
कितना सकून मिलता, तुम जो देखना चाहो...
गम को किसी से आप, बताकर तो देखिए...
जागते हुए भी ख्वाब, जो तुम देखना चाहो...
आँखों में हमको आप, बसाकर तो देखिये ....
संग तेरे चल पड़ेंगे, कई लोग राह में....
हमराह उनको आप, बनाकर तो देखिए.....
शर्मा के हंसीं लगती हो, तुम ये कभी देखा....
आइना अपने सामने, लाकर तो देखिए.....
रोशन सी हो उठेगी, तेरी दुनिया अजब सी....
"दीपक" को अपने दिल में, जलाकर तो देखिए....
कागज़ के फूल भी, महक उठेंगे, अगर....
हाथों में उनको आप, सहलाकर तो देखिए.....
हमको तो अपने दिल में, बिठा कर तो देखिए...
दिल को हमारे दिल से, मिला कर तो देखिए...
.............................................................................
सादर,
दीपक
Sunday, December 2, 2007
एक हंसीं लड़की
मेरे कॉलेज कि एक हंसीं लड़की....
मुझको दिल ही दिल मैं भाती थी...
मेरे दिन उसको देखते बीतें...
रात सपनों में वो ही आती थी....
मेरे होठों पे हंसी छा जाती...
जब कही वो जो मुस्कुराती थी...
मेरे भी गाल लाल होते थे....
जब कभी वो कहीं शर्माती थी...
उसके चलने से समां बंधता था...
सांस रूक रूक के मुझको आती थी ..
उसकी हर एक अदा पे मरता था...
वो तो इतना हमें लुभाती थी....
इक दिन वो खडी थी पास आकर...
मैंने देखा था उसको शर्माकर...
बोली वो आप कितने अच्छे हैं....
सूरत से लगते कितने सच्चे हैं...
सीरत भी आपने सही पाई...
किसी भी और ने नहीं पाई...
आंखों में झील सी गहराई थी ...
जिनमे मुझको दिखी सचाई थी ....
मैं तो बस खो गया था बातों में .....
रखी वो बाँध चुकी थी हांथों में....
राखी वो बाँध चुकी थी हाथों में ...
adar sahit ...
Deepak
मुझको दिल ही दिल मैं भाती थी...
मेरे दिन उसको देखते बीतें...
रात सपनों में वो ही आती थी....
मेरे होठों पे हंसी छा जाती...
जब कही वो जो मुस्कुराती थी...
मेरे भी गाल लाल होते थे....
जब कभी वो कहीं शर्माती थी...
उसके चलने से समां बंधता था...
सांस रूक रूक के मुझको आती थी ..
उसकी हर एक अदा पे मरता था...
वो तो इतना हमें लुभाती थी....
इक दिन वो खडी थी पास आकर...
मैंने देखा था उसको शर्माकर...
बोली वो आप कितने अच्छे हैं....
सूरत से लगते कितने सच्चे हैं...
सीरत भी आपने सही पाई...
किसी भी और ने नहीं पाई...
आंखों में झील सी गहराई थी ...
जिनमे मुझको दिखी सचाई थी ....
मैं तो बस खो गया था बातों में .....
रखी वो बाँध चुकी थी हांथों में....
राखी वो बाँध चुकी थी हाथों में ...
adar sahit ...
Deepak
Subscribe to:
Posts (Atom)