Sunday, December 16, 2007

"मोहब्बत"

हम तो खोये हैं उनकी यादों में...
रात दिन अब यूं ही निकलते हैं...
भीड़ में गुम न कहीं हो जाएँ....
अपनी ऊँगली पकड़ के चलते हैं....

दिल से दिल की तो राह होती ....
दिल को दिल की ही चाह होती है...
जब से हंस के तुम हमसे बोली हो...
जाने क्यों लोग हमसे जलते हैं...

दिल ये चाहे की तुम ही मिल जाओ...
मेरे घर चांदनी सी खिल जाओ...
रूप तेरा तो बस हमारा हो....
ये हंसी ख्वाब दिल में पलते हैं....

थोडा दामन जो तुमने लहराया...
देख के चाँद भी है शरमाया....
अपनी हालत बयां करें क्या हम...
हम तो बस मोम से पिघलते हैं....

तेरे चेहरे पे जो हंसी देखी...
तेरे दिल की है वो ख़ुशी देखी...
हम तो मदहोश से हुए "दीपक".....
रात भर करवटें बदलते हैं.....

तुझको भूलूं कभी ये बात आयी....
बिना मौसम के है बरसात आयी ...
अब तो रोके भी नहीं रुकते हैं...
अश्क खुद आप ही छलकते हैं .....

हम तो काबिल नहीं हैं तेरे पर....
जाने क्यों चाहते हैं तुझको ही...
ये भी बेबसी सी है मेरी.....
हम तो खुद आप ही को छलते हैं....

अब तो सावन का नूर फैला है...
फूल खिलते हैं दिल की बगिया में....
ये "मोहब्बत" है ख़ुशी का आलम....
अब तो मौसम यूं ही बदलते हैं......

सा-आदर....

दीपक

Monday, December 10, 2007

ग़ज़ल....

हमको तो अपने दिल में, बिठाकर तो देखिये....
दिल को हमारे दिल से, मिलाकर तो देखिए...
तुमको मिलेंगे फूल ही, बस फूल राह में...
इक गुलमोहर आँगन में, लगाकर तो देखिए....

चन्दा के नूर सा तेरा, चेहरा चमक उठे...
दिल कि ख़ुशी से खुद को, सजाकर तो देखिए...

कितना सकून मिलता, तुम जो देखना चाहो...
गम को किसी से आप, बताकर तो देखिए...

जागते हुए भी ख्वाब, जो तुम देखना चाहो...
आँखों में हमको आप, बसाकर तो देखिये ....

संग तेरे चल पड़ेंगे, कई लोग राह में....
हमराह उनको आप, बनाकर तो देखिए.....

शर्मा के हंसीं लगती हो, तुम ये कभी देखा....
आइना अपने सामने, लाकर तो देखिए.....

रोशन सी हो उठेगी, तेरी दुनिया अजब सी....
"दीपक" को अपने दिल में, जलाकर तो देखिए....

कागज़ के फूल भी, महक उठेंगे, अगर....
हाथों में उनको आप, सहलाकर तो देखिए.....

हमको तो अपने दिल में, बिठा कर तो देखिए...
दिल को हमारे दिल से, मिला कर तो देखिए...
.............................................................................

सादर,

दीपक

Sunday, December 2, 2007

एक हंसीं लड़की

मेरे कॉलेज कि एक हंसीं लड़की....
मुझको दिल ही दिल मैं भाती थी...
मेरे दिन उसको देखते बीतें...
रात सपनों में वो ही आती थी....

मेरे होठों पे हंसी छा जाती...
जब कही वो जो मुस्कुराती थी...
मेरे भी गाल लाल होते थे....
जब कभी वो कहीं शर्माती थी...

उसके चलने से समां बंधता था...
सांस रूक रूक के मुझको आती थी ..
उसकी हर एक अदा पे मरता था...
वो तो इतना हमें लुभाती थी....

इक दिन वो खडी थी पास आकर...
मैंने देखा था उसको शर्माकर...
बोली वो आप कितने अच्छे हैं....
सूरत से लगते कितने सच्चे हैं...

सीरत भी आपने सही पाई...
किसी भी और ने नहीं पाई...
आंखों में झील सी गहराई थी ...
जिनमे मुझको दिखी सचाई थी ....
मैं तो बस खो गया था बातों में .....
रखी वो बाँध चुकी थी हांथों में....

राखी वो बाँध चुकी थी हाथों में ...

adar sahit ...

Deepak

Friday, November 30, 2007

दीपक.....

दीपक भी माटी का ...
मैं भी हूँ माटी का ...
मेरी तो माटी बस....
तेरे से साथी हैं

जिन संग मैं हँसता हूँ....
बातें मैं करता हूँ......
कविता के बोलों में...
खोया मैं रहता हूँ...

जीते तो सब ही हैं...
सार्थक उसका जीवन ...
दूजे कि खातिर जो....
करता खुद को अर्पण...

जीवन ये मेरा भी...
सबको समर्पित है...
सबके मैं काम आऊं...
मन मेरा अर्पित है...

दर्द उसको कहते हैं ..
खुद के लिए है जो...
मन कि "ख़ुशी" है वो...
सबके लिए है जो...

ईश्वर से विनती ये...
मेरी है दिल से...
जीवन सफल कर ....
मिलता मुश्किल से...

सबको रोशन कर दूं...
मेरी ये इच्छा है...
सबके संग मैं खुश हूँ...
मेरी ये इच्छा है...

सबकी ही आखों मैं...
तारे सा चमकूं...
बिरहन के दिल को मैं...
खुशिओं से भर दूं...

पथिकों कि राहें मैं...
उजला सा कर दूं...
दीनों कि कुटिया को ...
रोशन मैं कर दूं....

"दीपक" जब कहते सब ..
दीपक मैं बन पाऊँ...
याद सब मुझको रखें...
ऐसा कुछ कर जाऊँ...

सा-आदर ....

दीपक

...

Thursday, November 29, 2007

बचपन.....

बचपन के किस्सों में ..
राजा थे रानी थी...
अपनी भी बूढी सी..
दादी थीं नानी थीं...

चन्दा को हम मामा..
कहकर बुलाते थे..
छत पर हम तारों संग...
बातें बनाते थे...

आँगन में अपने भी...
जमघट सा लगता था..
दादी और बाबा संग...
मेला सा जुटता था...

तितली के पीछे भी...
हम भगा करते थे...
पत्थर से आमों को...
तोडा हम करते थे...

डोरों पतंगों में...
उलझे से रहते थे...
टूटे खिलोने में...
खोये से रहते थे...

खेतों किनारे हम...
साईकिल चलाते थे...
चिडियों को छत पर हम...
दाना खिलाते थे...

प्यारी सी एक लड़की...
संग खेला करती थी...
छोटी सी बातों पर....
वो रोया करती थी....

सीधी थी फिर भी हम...
उसको सताते थे...
जितना वो चिढ़ती थी..
उतना चिढ़आते थे...

इमली और जामुन हम..
संग बीना करते थे...
एक इमली की खातिर...
आपस मैं लड़ते थे...

गावों के मेलों में...
हम जब भी जाते थे...
टिक्की, बतासे, जलेबी...
हम खाते थे....

झूला हिन्डोंले में...
हम झूला करते थे...
अक्सर खिलोनों पर....
हम मचला करते थे...

हम सबसे मिलते थे...
हँसते हंसाते थे...
अक्सर हम शामों में...
हुडदंग मचाते थे...

कागज के रॉकेट को...
हम तो उडाते थे...
बारिश के पानी मैं...
नावें चलते थे...

छोटी सी दुनिया थी...
छोटे से सपने थे...
हम तो बस तब सिमटे...
घर में ही अपने थे...

अब न वो बचपन है ...
न वो कहानी...
अब न वो किस्से ....
न बातें पुरानी....

अपनी तो इच्छा ये...
लौटें दिन जीवन के....
जाकर जो आये न...
दिन फिर वो "बचपन" के ...

इक इक कर सब छूटे ....
हमसे तो अब तक...
यादों में बसते सब ....
भूले न अब तक ...

स-आदर......दीपक....

Wednesday, November 28, 2007

"एड्स"

कल तक वो फूल जैसा..
महका सबके साथ में...
जिन्दगी कम होती उसकी..
रेत जैसे हाथ में....

उसकी आखों में थे देखे...
हमने तो सपने कई..
टूट कर बिखरे हैं सब ही....
बदले से हालत में...

बातें जो करता था रहता...
चाँद तारों की सदा...
छत पे जाने को है तरसा...
शख्स वो हर रात में...

कितने अरसे से वो मेरे...
संग ही में था रहा....
खट्टे-मीठे कितने किस्से...
यादों की बारात में...

आँखों में तो बस नमी है...
आशा न कोई बची है...
"एड्स" का रोगी बना वो...
सब इसी आघात में...

सांत्वना कैसी भी दें तो...
वो अधूरी सी लगे....
सोच न पाएं कहें क्या...
अपनी उस मुलाकात में....

माँ को देखूं मैं जो उसकी...
दिल मेरा टूटा ही जाये...
पत्नी की वो करून चीखें...
गूंजती जज्बात में....

तूफ़ान में पतवार टूटी...
मांझी की हिम्मत भी छूटी...
जिन्दगी की नाव डोले...
गम की इस बरसात में...

"एड्स" ने लाया है "दीपक"...
जिन्दगी को कटघरे में....
दोष उसका कोई दे तो....
दोष उसकी जात में....

कल तक वो फूल जैसा..
महका सबके साथ में...
जिन्दगी कम होती उसकी..
रेत जैसे हाथ में......................

.................. Deepak

Monday, November 26, 2007

दीपक का भाग्य

Khud jalkar main roshan karta..
Man mandir ko sabke hi..
Barson se main jalta aaya..
Ghar aangan main subke hi..

Raja ke mahlon main jalta..
Deenon ki kutiya main bhi..
Ek sa roshan karta subko..
Na badla hoon kabhi kahin..

Devalay main bhi hoon jalta..
Man ke andar bhi main hi..
Khushion main main sabke sang hoon..
Marghat ki seedhe par bhi..

Mujh bin yagya na hote koi..
Pooja hoti nahin kahin...
Mere es saubhagya se jalte..
Kitne man ke andar hi...

Duniya kahti baati jalti..
Jyoti to hai baati ki..
Par mujh main na tel agar ho..
Baati jalti nahin kabhi..

"Deepak" ke to bhagya main hi bas..
Jalna hi to likha huwa..
Duniya ko roshan karne ka..
Bhagya mujhe hi mila huwa...

बातों बातों में....

तेरा नाम लिया करते हैं..हम तो बातों बातों में...
मेरे सपनों मैं तुम आतीं...अक्सर कर के रातों में...

वो तेरा घबरा जाना...और फिर से शरमा जाना...
धीरे से मुस्काना तेरा...हाथ लिया जब हाथों में...

कैसे भूलुगा वो मंज़र..हाथ छुडा कर भागीं थीं...
भीगे होंगे तेरे तन-मन...सावन की बरसातों मैं....

तेरी आँखों की वो भाषा...पढ़कर में कह सकता हूँ ...
तेरे दिल में मैं ही मैं हूँ... हूँ तेरे जज्बातों में...

ये तन तुझसे बिछुडा "दीपक"...पर मन तेरे पास ही है...
तुझको दे बैठे हैं दिल....उन छोटी मुलाकातों मे...

सात वचन चाहे थे तुमने ...सात रंग की दुनिया में....
एक वचन भी दे न पाया...मैं तुमको उन सातों में...

तेरा नाम लिया करते हैं..हम तो बातों बातों में...
मेरे सपनों मैं तुम आतीं...अक्सर कर के रातों में...

स-आदर ..

दीपक.....

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