मेरे कॉलेज कि एक हंसीं लड़की....
मुझको दिल ही दिल मैं भाती थी...
मेरे दिन उसको देखते बीतें...
रात सपनों में वो ही आती थी....
मेरे होठों पे हंसी छा जाती...
जब कही वो जो मुस्कुराती थी...
मेरे भी गाल लाल होते थे....
जब कभी वो कहीं शर्माती थी...
उसके चलने से समां बंधता था...
सांस रूक रूक के मुझको आती थी ..
उसकी हर एक अदा पे मरता था...
वो तो इतना हमें लुभाती थी....
इक दिन वो खडी थी पास आकर...
मैंने देखा था उसको शर्माकर...
बोली वो आप कितने अच्छे हैं....
सूरत से लगते कितने सच्चे हैं...
सीरत भी आपने सही पाई...
किसी भी और ने नहीं पाई...
आंखों में झील सी गहराई थी ...
जिनमे मुझको दिखी सचाई थी ....
मैं तो बस खो गया था बातों में .....
रखी वो बाँध चुकी थी हांथों में....
राखी वो बाँध चुकी थी हाथों में ...
adar sahit ...
Deepak
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