Monday, December 10, 2007

ग़ज़ल....

हमको तो अपने दिल में, बिठाकर तो देखिये....
दिल को हमारे दिल से, मिलाकर तो देखिए...
तुमको मिलेंगे फूल ही, बस फूल राह में...
इक गुलमोहर आँगन में, लगाकर तो देखिए....

चन्दा के नूर सा तेरा, चेहरा चमक उठे...
दिल कि ख़ुशी से खुद को, सजाकर तो देखिए...

कितना सकून मिलता, तुम जो देखना चाहो...
गम को किसी से आप, बताकर तो देखिए...

जागते हुए भी ख्वाब, जो तुम देखना चाहो...
आँखों में हमको आप, बसाकर तो देखिये ....

संग तेरे चल पड़ेंगे, कई लोग राह में....
हमराह उनको आप, बनाकर तो देखिए.....

शर्मा के हंसीं लगती हो, तुम ये कभी देखा....
आइना अपने सामने, लाकर तो देखिए.....

रोशन सी हो उठेगी, तेरी दुनिया अजब सी....
"दीपक" को अपने दिल में, जलाकर तो देखिए....

कागज़ के फूल भी, महक उठेंगे, अगर....
हाथों में उनको आप, सहलाकर तो देखिए.....

हमको तो अपने दिल में, बिठा कर तो देखिए...
दिल को हमारे दिल से, मिला कर तो देखिए...
.............................................................................

सादर,

दीपक

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