Saturday, March 13, 2010

"मन" और "दिल"

आज काफी दिवस उपरान्त में पुनः उपस्थित हुआ हूँ अपनी एक कविता के साथ...जो की आशा है आप सभी को पसंद आएगी...

"मन" और "दिल" में होता..
है क्या फरक बताएँ..
एक मित्र ने था पूछा..
"दीपक" हमें समझाएं..

"दिल" स्थूल तत्त्व है पर..
"मन" सूक्ष्म तत्त्व होता..
"दिल" पास में सभी के..
"मन" हर जगह विचरता..

"दिल" प्यार सिखाता है..
व्यव्हार "मन" सिखाता..
जीने के जो भी होते..
आचार "मन" सिखाता..

होती है प्रीत जिस से ..
"दिल" में उसे बसाते ..
हों मित्र चाहे जितने ..
"मन" में सभी समाते ..

"दिल" जो है धड़क जाता ..
उसका सबब है कोई ..
और "मन" कभी न धडके ..
हो मन में चाहे कोई...

"दिल" भाव सरीखा है...
"मन" भावना सा होता...
"दिल" काम अगर है तो...
"मन" कामना सा होता...

इतना ही फरक "दीपक"
होता है "मन" और "दिल" में..
"दिल" संग में सभी के...
"मन" होता है सबके संग में...

अपनी टिप्पणियों से मुझे अवगत करने के आग्रह के साथ...
स-आदर

दीपक शुक्ल..

22 comments:

मुदिता said...

Deepak ji

bahut bareeki se farak bataya aapne dil aur man ka..

sarvshreshtha panktiyan lagi

"दिल" स्थूल तत्त्व है पर..
"मन" सूक्ष्म तत्त्व होता..
"दिल" पास में सभी के..
"मन" हर जगह विचरता..

badhayi is farak ke chintan aur pratipadan ke liye

Regards
Mudita

Deepak Shukla said...

Mudita ji..

Aapka dhanyavad ki aapne kavita na sirf padhi balki ese apne shabdon se bhi alankrut kiya...

Aaapka tahe dil se dhanyawad...

Deepak..

shikha varshney said...

दीपक जी ! ब्लॉग का नया रूप अच्छा है...और कविता का तो कहना ही क्या..मन और दिल का फरक बहुत खूबसूरती से समझाया आपने..
सुस्वागतम..ब्लोगिंग की दुनिया में:)

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

Gaurav Shukla said...

bahut achhi kavita hai uncle jimann aur dil.humko nahi lagta aapke bataye hue kaamo k siwa ye dono aur kuch bhi karte hain...mann aur dil k saare bhaav aapne bata diye.great example of a perfect kavita...

संगीता पुरी said...

इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन और दिल का अंतर बहुत सूक्ष्म तरीके से बताया ...अच्छी रचना...बधाई

हरकीरत ' हीर' said...

इतना ही फरक "दीपक"
होता है "मन" और "दिल" में..
"दिल" संग में सभी के...
"मन" होता है सबके संग में...

अच्छी रचना....!!

rashmi ravija said...

"दिल" प्यार सिखाता है..
व्यव्हार "मन" सिखाता..
जीने के जो भी होते..
आचार "मन" सिखाता.

बड़ी अच्छी तरह बयान किया है है,मन और दिल का फर्क....ख़ूबसूरत रचना

Deepak Shukla said...

Hi..
Aap sabhi ka main tahe dil se abhaari hun jinhone apna bahumulya samay nikaal kar meri kavita ko padha aur mera utsaah vardhan kiya..

Dhanyawad...dil se..

DEEPAK..

अंजना said...

अच्छी रचना.......

Deepak Shukla said...

@ANJANA ji..

Aapka dhanyawad ki aapne mera utsaah vardhan kiya.. Dhanyawad.

DEEPAK..

Anonymous said...

bahut khub..
aapko padhkar achha laga..
pehli baar aapke blog par aaya hoon...
aata rahoonga...
regards
http://i555.blogspot.com/

Deepak Shukla said...

@ Shekhar Suman ji...

Aapke shabdon ne mera utsaah vardhan kiya hai...

Dhanyavad..

Deepak..

Alpana Verma said...

मन और दिल के अंतर को इतनी आसानी से समझा दिया..वाह!क्या बात है..भाव और भावना का अंतर बहुत ही गूढ़ लगा.

****आप का ब्लॉग भी बहुत अच्छा है.

Alpana Verma said...

आप शायद नए हैं ब्लॉग्गिंग में..ऐसा आप की टिपण्णी से लगा...:) जैसे ही आप यहाँ नियमित हो जायेंगे...इस ब्लॉग्गिंग की दुनिया के विभिन्न रंग -रूपों से आप का परिचय होता रहेगा...

लिखते रहीये...पढ़ते रहीये.....शुभकामनाएं..

Deepak Shukla said...

@ Alpana ji..

Aapka bahut dhanyawad ki aapne apne amulya smay main se kuchh samay mere blog ke liye bhi nikaala.. Dhanyavad..

DEEPAK SHUKLA..

mridula pradhan said...

achchi lagi.

रचना दीक्षित said...

"दिल" भाव सरीखा है...
"मन" भावना सा होता...
"दिल" काम अगर है तो...
"मन" कामना सा होता...

बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति बड़ी सकारात्मक बात
आभार

Deepak Shukla said...

@ मृदुला जी...
@ रचना जी...

मैं आपका आभारी हूँ की आपने मेरी कविता को सराहा.. आपसे अनुरोध है आप पुनः मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा उत्साह वर्धन करती रहें...

धन्यवाद्..

दीपक शुक्ल...

Unknown said...

Good

Unknown said...

प्रिय दीपक जी,
मन और हृदय पर मैं एक पुस्तक लिख रहा हूँ | आपकी कविता सहयोग देती है हृदय के रूप के बारे में समझाने की लेकिन ये हृदय वही है जो हमारी छाती के मध्य है ? क्यों कि आध्यात्म में चीजों के अर्थ बदल जाते हैं | मैं भी इसे समझने का प्रयास कर रहा हूँ , पुस्तक लिखने से पहले | यदि कोई पुस्तक जो हृदय पर हो तो मुझे बताइयेगा | मन पर तो एक पुस्तक "मन और उसका निग्रह " मुझे मिली है जो रामाकृष्ण मिशन की है |
धन्यवाद
के बी व्यास

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