
कई दिनों से मेरे कई मित्रों का आग्रह था की में अपने ब्लॉग पर भी कोई पोस्ट डालूं...जबकि मैं अधिकांशतः टिप्पणियों में ही कवितायेँ लिख रहा था....
तो लीजिये प्रस्तुत है मेरी ताज़ा तरीन ग़ज़ल का पहला भाग...जिसे मैंने बड़े दिल से लिखा है जोकि आशा है की आपके दिल तक अवश्य पहुंचेगी...
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यही जुर्म हमने, किया सबसे पहले...
तेरा नाम हमने, लिया सबसे पहले...
तेरे गेसुओं की, वो उलझी लटों का...
जो जादू था हमपे, चला सबसे पहले...

वो सर्दी के मौसम में, तेरा सिमटना...
यही रूप दिल में, बसा सबसे पहले...
वो आखों में तेरी, जो तिनका गिरा था...
तेरा गाल उस दिन, छुआ सबसे पहले...
सभी ने दुआ जब भी, मांगी है "दीपक"
मेरा हाथ हरदम, उठा सबसे पहले...
तुम्हें हँसते देखा, जो हमने किसी से...
तो सच में कहूँ की, जला सबसे पहले...
यही जुर्म हमने, किया सबसे पहले...
तेरा नाम हमने, लिया सबसे पहले...
आपकी टिप्पणियों/मार्गदर्शन/ सुझावों की प्रतीक्षा में.....
दीपक शुक्ल.....