Wednesday, October 31, 2012

दो सहेलियाँ..

एक लिखती है...मन से..
एक रंगती है......रंग से..

हर शब्द, हर चित्र..
हर अहसास..हर भाव
हर द्वंद्व, हर संबन्ध..
हर राग, हर द्वेष..
हर व्यक्त और शेष..
...

जीवन की..
अच्छाईयाँ, बुराईयाँ..
सबलता, दुर्बलता..
राग और रंग..
साथ और संग..
परिधि और विस्तार..
स्वप्न और साकार..
टूटे से पंख...
सीप और शँख..
गीत और नज़म..
जाम और वज़म..
अनकही, अनसुनी..
सुलझी, अनसुलझी..
रहस्य सी बातें..
जगती सी रातें..
तृष्णा, मृगतृष्णा..
ईमरोज, अमृता..
विन्सी, मोनालिसा..
'लेखनी' और 'तूलिका'..

दो तन, एक मन,
एक स्वप्न, एक चिन्तन..
नजम, गीत,भीत, चित्र,
गजल, प्रीत..हार, जीत..
तरुणाई, अरुणाई..
सार, क्षार..
गूँज..अनुगूँज..
आह..दर्द..
गर्म.. सर्द..
दो जिस्म, एक जान..
दो साँस, एक अहसास..
दो परिवेश, एक वेश..
दो गीत, एक संगीत..
दो तार, एक सितार..
दो रंग, एक संबन्ध..
दो राग, एक अनुराग..
दो माध्यम, एक अभिव्यक्ति
दो सहेलियाँ, एक सी..
एक लिखती है..
मन की तरंग..
एक रंगती है...
जीवन के रंग..

दो सहेलियाँ
'लेखनी'' और ''तूलिका''..
...........

मैंने अभिव्यक्ति के दो माध्यमों को एक कविता के माध्यम से परिभाषित करने का प्रयास किया है..कृप्या अपनी अमूल्य राय से मुझे अवगत करें...

शुभ अपरान्ह...शूभ दिवस..

सादर...

दीपक शुक्ल..

 
 
 
 
 
दीपक इस संसार में लूट सके तो लूट..
अँत समय पछताएगा, जब प्राण जायेंगे छूट.....

टुटपुँजिया बन कर नहीं, हक से माँगो आज...
भ्रष्टाचारी सब यहाँ, नेता, सेठ, समाज..

पत्रकार भी अब दिखें, नँगे हुये हमाम..
मोटी घूस वो माँगते, बदनामी का दाम...

कलम कैमरा भी चला, अब तो ऐसी राह..
खबरों से ज्यादा जहाँ, पैसे की है चाह...

अब तो इस संसार में, उसी का ऊँचा नाम...
भ्रष्टाचारी जो बडा, जितना जो बदनाम..

''लगे रहो भाईलोग.....ह्क से माँगो...अपना हिस्सा''.....
.........
***
शुभ दिवस...

दीपक शुक्ल..

Sunday, January 1, 2012

"नव वर्ष मंगलमय हो"

नमस्कार.....

सर्वप्रथम सभी पाठकों को नव वर्ष २०१२ की हार्दिक शुभकामनायें...ईश्वर आप सबके जीवन में सुख, शांति, समृधि और खुशियाँ लाये.....

इसी मंगलकामना को संजोये मेरी यह कविता आप सबको समर्पित है....


नया वर्ष मंगल...
हो सबको यहाँ जो...
मिले सबको खुशियाँ...
वो चाहे जहाँ हो...

ये मेरी दुआ सब...
सदा मुस्कुराएँ...
हो दिल में ख़ुशी...
और सभी जगमगायें...

प्रफुल्लित से मन हों...
उलस्सित से तन हों...
सभी लोग चेतन....
आनंदित जीवन हो ...

जो भी मन में बसता हो॥
वो मिल ही जाये...
कोई दूसरा उसका...
दिल न लुभाए...

जो तेरे ह्रदय को...
धड़कता सा कर दे...
तो तेरे लिए उसका...
दिल संग धडके...

जो आखों में कोई...
है तारे सा चमके...
वो इस वर्ष में...
तेरा रह जाये बनके...

सभी स्वप्न सबके...
ही हो जाएँ पूरे...
किन्ही कारणों से...
रहे जो अधूरे...

ये जीवन कविता...
सरीखा बनायें....
हर एक रंग इसमे...
सब चुनकर लगाएं...

हर इक कार्य सबके ...
हों पूरे सदा ही.....
हर इक आस सबकी...
हो पूरी सदा ही....

कविता से हम...
दिल को दिल से मिलाएं...
नए गीत हम नित....
सदा गुनगुनायें.....

ये "दीपक" कि विनती है...
इश्वर से अब तो....
हर इक पग पे उन्नति...
मिले आप सब को....

सभी के सभी मैं...
दुःख-सुख बाँट पाऊं ...
है जो वादा जो खुद से॥
उसे मैं निभाऊं...

मुझे मित्र माना....
आभारी मैं सबका...
ये मेरी तमन्ना...
बनूँ आप सब सा.....

आप सभी को स-परिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें....

स-आदर....

दीपक शुक्ल....

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