सबसे मधुर है माँ का रिश्ता...
प्रभु ने इसे बनाया है...
तेरे उपकारों से उर्रिन...
कोई न हो पाया है...
अपनी खुशियाँ वार दीं तुने...
मैंने जब मुस्काया है...
अपना सुख मैं तज न पाया...
जब दुःख तुझ पर आया है...
अक्षर ज्ञान कराया तुने...
मुझको बहुत पढाया है...
मैंने तुझको छोड़ के ऐ माँ...
लक्ष्मी को अपनाया है...
अपनी हर इच्छा को तुझसे...
हठ करके मनवाया है...
पर वादा गर किया जो तुझसे...
उसको नहीं निभाया है....
ऊँगली पकड़ के ऐ माँ न तुमने...
चलना मुझे सिखाया है...
पर मैंने न हाथ ko thama ..
जब भी मौका आया है...
ममता के आँचल को ऐ माँ...
तुने सदा ही छाया है...
कितना निष्ठुर हूँ मैं फ़िर भी...
मुझको गले लगाया है...
सब कुछ मैंने चाह तुझसे...
कुछ भी न लौटाया है...
पलकों पर फ़िर भी माँ तुमने...
मुझको सदा बिठाया है...
बिछुदा कभी जो मैं माँ तुमसे...
तुमने नीर बहाया है...
जाने कितनी बार हे ऐ माँ...
तेरे ह्रदय दुखाया है....
ईश्वर ने अपने होने का...
यह अहसास कराया है....
माँ के रूप मैं देखो तो...
वह ख़ुद धरती पर आया है....
स-आदर...
दीपक शुक्ला
5 comments:
माँ तो ईश्वर का दूसरा नाम है,
बड़े सार्थक शब्दों में माँ को चित्रित किया है,
बहुत सुन्दर.......
maa se badhkar duniya mein koi daulat nahi hai
unse jakar pooche koi jinki maa nahi hai.
aapki kavita padhkar main bhi maa ki yaadon mein door kat chali gayi
bahut bahut badhai aapne bahut sundar bhav maa ke samarpit kiye hain.
nira
sunder vishay par bhavpoorna rachna ...
ईश्वर ने अपने होने का...
यह अहसास कराया है....
माँ के रूप मैं देखो तो...
वह ख़ुद धरती पर आया है....
इस से बढ़कर श्रद्धा सुमन कोई संतान आपने माँ को नहीं भेंट कर सकता...अप्रतिम कविता
ईश्वर ने अपने होने का...
यह अहसास कराया है....
माँ के रूप मैं देखो तो...
वह ख़ुद धरती पर आया है....
bahut pavitr vichaar....bless u
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