
वो प्यारी सी लड़की।
बड़ी खूबसूरत,
वो न्यारी सी लड़की॥
हम देखें उसे तो,
वो शर्माती रहती।
कहें कुछ जो उस से,
तो घबराती रहती॥
वो दामन संभाले,
नज़र को झुका के।
वो देखे नहीं हमको,
नज़रें उठा के॥
कोई जब भी बोले,
तभी बात करती।
मगर वो ...नहीं ,
सबके ही साथ करती॥
वो मीठी सी बोली
में बोली हमेशा।
मगर वो बहुत कम,
ही बोली हमेशा॥
कभी जो कहीं वो,
जरा मुस्कुराई।
लगा जैसे बदली,
गगन पे है छाई॥
हंसी जो कहीं वो,
किसी बात पर जो।
लगा जैसे सावन,
की बरसात आई॥
वो पलकें उठाये,
उठाकर गिराए।
बड़ी सादगी से,
वो दिल को चुराए॥
वो कजरारी आँखों में,
काजल अनोखा।
जिसे देख, हो साँझ का,
सबको धोखा॥
वो पहने गले में जो,
जो मोती की माला।
हर इक ख्वाब जैसे,
पिरोकर संभाला॥
जहाँ भी वो जाए,
फिजा गुनगुनाये।
महक से उसकी की,
समां महक सा जाये॥
वो सपनों में आके,
है हमको सताती।
वो दिन को सता के,
ही सपनों में आती॥
वो पहने है पाजेब,
छम-छम है करती,
मगर वो दबे पांव,
फिर भी है चलती॥
न जानूं की वो कबसे,
दिल में बसी है।
मैं जानूं वोही मेरे,
दिल में बसी है॥
वो भोली सी लड़की,
वो प्यारी सी लड़की।
बड़ी खूबसूरत,
वो न्यारी सी लड़की॥
आपकी टिप्पणियों/सुझावों/मार्गदर्शन का आकांक्षी..
दीपक शुक्ल...