नमस्कार मित्रो...
कई दिनों से मेरे कई मित्रों का आग्रह था की में अपने ब्लॉग पर भी कोई पोस्ट डालूं...जबकि मैं अधिकांशतः टिप्पणियों में ही कवितायेँ लिख रहा था....
तो लीजिये प्रस्तुत है मेरी ताज़ा तरीन ग़ज़ल का पहला भाग...जिसे मैंने बड़े दिल से लिखा है जोकि आशा है की आपके दिल तक अवश्य पहुंचेगी...
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यही जुर्म हमने, किया सबसे पहले...
तेरा नाम हमने, लिया सबसे पहले...
तेरे गेसुओं की, वो उलझी लटों का...
जो जादू था हमपे, चला सबसे पहले...
वो सर्दी के मौसम में, तेरा सिमटना...
यही रूप दिल में, बसा सबसे पहले...
वो आखों में तेरी, जो तिनका गिरा था...
तेरा गाल उस दिन, छुआ सबसे पहले...
सभी ने दुआ जब भी, मांगी है "दीपक"
मेरा हाथ हरदम, उठा सबसे पहले...
तुम्हें हँसते देखा, जो हमने किसी से...
तो सच में कहूँ की, जला सबसे पहले...
यही जुर्म हमने, किया सबसे पहले...
तेरा नाम हमने, लिया सबसे पहले...
आपकी टिप्पणियों/मार्गदर्शन/ सुझावों की प्रतीक्षा में.....
दीपक शुक्ल.....
68 comments:
बहुत खूबसूरत गज़ल है ...
और अच्छा किया जो आपने अपने ब्लॉग की तरफ भी रुख किया :) अब आते रहिएगा आपका अपना ही घर है :)
शिखा जी....
बहुत बहुत धन्यवाद्...मेरा ध्यान आकर्षित करने के लिए....
और मेरी ग़ज़ल पर पहली प्रतिक्रिया के लिए....
दीपक....
सभी ने दुआ जब भी, मांगी है "दीपक"
मेरा हाथ हरदम, उठा सबसे पहले...
तुम्हें हँसते देखा, जो हमने किसी से...
तो सच में कहूँ की, जला सबसे पहले...
वह वह ..क्या बात है दीपक ...गज़ल तो बहुत शानदार कही है ...बहुत खूबसूरत ..
बेहद ख़ूबसूरत, शानदार और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने! हर एक शब्द दिल को छू गयी! पहली तस्वीर तो बहुत ही सुन्दर लगा और मन मोह लिया! आपने इतने दिनों के बाद उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुत किया है और आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
bahut hi achhi gazal
bahut khubsurat gazal.........gazal padhkar to bade bhaiya aaj bhi bahut shararati maalum hote hain........hahahhah
acha hai sir, aise hi aansu paunchhne ke bahaane gaalo ko chhute rahiye.....hahahahha
बेहतरीन। लाजवाब।
वाह दीपक भाई
क्या ग़ज़ल लिखी है आपने
और ये पंक्तियाँ तो मुझे बहुत पसंद आई ...
वो आँखों में तेरी जो तिनका गिरा था
तेरा गाल उस दिन छुआ सबसे पहले ||
बहुत सुंदर ग़ज़ल.
विशेष:
वो आखों में तेरी, जो तिनका गिरा था...
तेरा गाल उस दिन, छुआ सबसे पहले...
इस गज़ल को पढ़कर मिजाज रंगीन हो गया.
यह गज़ल यदि मंच से सुनाई जाती है तो श्रोता मजाक में यह कमेंट पास कर सकते हैं...
सबसे पहले पर इतना यकीं..!
आपके मुंह से सुना सबसे पहले...
सराहनीय अभिव्यक्ति, धन्यवाद दीपक जी.
वाह! यह हुई ना बात.... ग़ज़ल बहुत सुंदर .....शानदार.... और दिल को छू लेने वाली है....
--
www.lekhnee.blogspot.com
दीपक बाऊ जी,
जुर्म के बारे में बताया है, सज़ा के बारे में नहीं!!!???
खूबसूरत .....
आशीष
कमाल है साहब इतनी बेहतरीन ग़ज़ल लिख के भी सुझाव मांग रहे हैं... मज़ा आ गया प्रेम की ये चाशनी चाट के..
दीपक जी ,
बहुत खूबसूरत गज़ल.....
तुम्हें हँसते देखा, जो हमने किसी से...
तो सच में कहूँ की, जला सबसे पहले...
दीपक के जलने से उजाला ही होगा ना :)
लिखते रहिये ..बधाई
kya bat hai, lajwab
वह वह दीपक जी कमाल कर दिया ..बहुत प्यारी नज़्म
एक सुझाव -आपने जो मेरे ब्लॉग पर कमेंट्स दिए है उनको भी अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कीजिये ....अनमोल है, अपनी कविता के बाद आपकी टिपण्णी पढना जवाबी कव्वाली सा मज़ा देती है
दीपक जी
मज़ा आ गया……………हर शेर प्रेम रस मे भीगा हुआ आपके प्रेम की पराकाष्ठा दर्शा रहा है………………बेहद उम्दा गज़ल्।
दीपक भाई हमें तो आपके इस गजल से जिन्दगी के प्रति आपकी बेहद बफादारी की सुगंध आ रही है जो एक अच्छे इंसान की पहचान होती है ,अच्छाई के लिए ईमानदारी से जुर्म भी कर लेना चाहिए ...
dil ko choo jaane wali ghazal.
Ati sundar !
बहुत खूबसूरत गज़ल है. दीपक जी आज पता चला की आप एक अच्छा लड़का होने साथ ही अच्छी खासी ग़ज़ल भी लिखते हैं
वो आखों में तेरी, जो तिनका गिरा था...
तेरा गाल उस दिन, छुआ सबसे पहले...
अच्छा लगा ये बहाना ....
तुम्हें हँसते देखा, जो हमने किसी से...
तो सच में कहूँ की, जला सबसे पहले...
जलने की महक यहाँ तक आई...
आपकी टिप्पणियां मेरे ब्लॉग की शोभा हैं इतने इत्मीनान से लिखी आपकी हर टिपण्णी मुझे प्रेरणा देती है
सुन्दर ग़ज़ल है...
बहुत सुन्दर कविता ................
wah ! deepak ji aapto choope rustam nikle.pahle to apne blog par kavita ke roop me aapki itni achhi tippniya milti hain .jyaada khushi ki baat hai ki ab seedhe aapke blog par aa sakungi.
itni shandaar prastuti ke liye hardik badhai swikaaren.
poonam
Deepak jee sarv pratham aapka bahut bahut shukriya mera blog join karne ke liye.
Aapki ghazal padhi..
सभी ने दुआ जब भी, मांगी है "दीपक"
मेरा हाथ हरदम, उठा सबसे पहले...
तुम्हें हँसते देखा, जो हमने किसी से...
तो सच में कहूँ की, जला सबसे पहले...
bahut khoob likha hai aapne...bahut umda.
badhai hai aapko.
सुंदर रचना
वाह..!
आपके कवि हृदय से दो-चार होने का सुअवसर मिला है हमें भी..टिप्पणियों के माध्यम से...
और आज उस में और विस्तार हुआ है...
न कविता कही न दोहा कहा...
और ग़ज़ल रचा सबसे पहले...
सब सुन्दर है...
वो आखों में तेरी, जो तिनका गिरा था...
तेरा गाल उस दिन, छुआ सबसे पहले...
यही सब तो करते रहते हैं आप ......बहुत खूब .....!!
हमने न देखी थी नज़्म सबसे पहले
वरना हमारा कमेन्ट होता सबसे पहले
दीपक शुक्ल जी
नमस्कार !
आप तो टिप्पणी बक्सों में अपनी काव्यात्मक टिप्पणियों के साथ तहलका मचाये रखने के लिए जाने जाते हैं न !
ख़ूब लिखते हैं …
वो आखों में तेरी, जो तिनका गिरा था
तेरा गाल उस दिन, छुआ सबसे पहले
ऐसे मत करो बंधु , झुरझुरी होने लगती है …
हा हा हा
तुम्हें हंसते देखा, जो हमने किसी से
तो सच में कहूं … मैं जला सबसे पहले
… और दूसरे नंबर पर मैं जला ।
यार , हम मर्द लोग भी ईर्ष्या - जलन के शिकार होने लगे हैं अब …
बहरहाल , मज़ा आया आपकी रचना पढ़ कर ।
बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जनाब राजेंद्र जी ,
आप मेरा पीछा कबसे करने लगे ...और भी कई जगह देखा ....!!
यूँ भले आदमियों से जलना ठीक नहीं ....!!
हा हा हा
कुछ संयोगों का कोई अर्थ होता है शायद !
… सब माया है
दीपकजी के यहां पार्टी देख कर आ गये थे हम भी
यही जुर्म किया हमने ,सबसे पहले तेरा नाम लिया हमने ...
उसके नाम के बाद या पहले और किसका नाम लिया जा सकता था ...
एक गीत याद आ रहा है
तेरी याद आई तेरे आने से पहले
तुझे याद किया तेरे जाने के बाद ..
बहुत सुन्दर गीत/ग़ज़ल ..!
ek baat aur.....kahaan the ab tak>????
sabko apni rachnao ki madira pilate rahe....par khud pyase rah gaye!!!
achaa hai ab apne apne ghar (blog) me bhi jhanka....!!!
bahut achhi gajal aur aapne mere blog par jo rakhi par kavita likhi behad pasand aayee..
Sundar prastuti ke liye aabhar aur dhanyavaad
बहुत अच्छी गजल लिखी है .
अब आपसे पहले कोई और कुछ करता तो आपको अच्छा लगता क्या ? बेशक जले आप उसे किसी के साथ हस्ता देख लेकिन कोई और जलता तो वो भी तो अच्छा ना लगता न ?
सुंदर गज़ल.
बधाई.
रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
वो आखों में तेरी, जो तिनका गिरा था...
तेरा गाल उस दिन, छुआ सबसे पहले...
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ... प्रेम का भीना भीना एहसास लिए ....
आप को राखी की बधाई और शुभ कामनाएं.
बहुत सुंदर नजम जी, धन्यवाद
रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनायें!
.
hmmm.....very romantic !
good one !
.
waah deepak ji , gazal ko padhkar aanand aa gaya ..
badhayi
vijay
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
wow ! bahut hi khoobsurat likha hai aapne... bahut badiya...
keep it up....
A Silent Silence : तनहा मरने की भी हिम्मत नहीं
Banned Area News : Sahitya Akademi declares 'Bal Sahitya Puraskar 2010'
deepak bhai bahut hi khoobsurat gazal likhi aapne..badhai
deepak ji.....awesome!
बहुत खूबसूरत ..
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
दीपक जी आज पता चला की आप एक अच्छा लड़का होने साथ ही अच्छी खासी ग़ज़ल भी लिखते हैं -" वो आखों में तेरी, जो तिनका गिरा था...तेरा गाल उस दिन, छुआ सबसे पहले..." अच्छा लगा ये बहाना ....
तुम्हें हँसते देखा, जो हमने किसी से...
तो सच में कहूँ की, जला सबसे पहले...
जलने की महक यहाँ तक आई...इतने इत्मीनान से लिखी आपकी हर टिपण्णी मुझे प्रेरणा देती है
maama shree...pehle to aapko saadar pranam...tat-paschat..jamdin ki dhero shubhkaamnaayein...
aur ant mein...apni lekhani ki pratibha se sabka jeevan alokit karne ka jo aapka prayas hai,use aur bhee unchaai par le jaayiye..aisi kaamna hai...
shubhkaamnaayon sahit....
aapkaapna-anuj
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
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तुम्हें हँसते देखा, जो हमने किसी से...
तो सच में कहूँ की, जला सबसे पहले..
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bahut badhiya jurm kiya aapne
very good
आप का ब्लॉग पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.
हिंदी भाषा का प्रेमी हूँ, लेकिन मैं खुद अग्न्रेज़ी में लिखता हूँ.
अकस्मात् ही आपका ब्लॉग मिल गया इन्टरनेट पर....
कृपया मुझे बताएं कि आपके ब्लॉग को फोल्लो कैसे किया जाए?
हमारी शुभकामनाएं कि आप और अच्छा लिखें और हमें भी हिंदी भाषा का ज्ञान प्रदान करें !
bus ik baat ki kami hai, apke blog par bahut distraction hai,, bahut sari pictures and lines distract krti hai,
achha hota agar ye plan and simple hota
आपका
रोब्बी ग्रे
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........
http://saaransh-ek-ant.blogspot.com
बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........
http://saaransh-ek-ant.blogspot.com
बहुत खूबसूरत गज़ल लिखा है आपने!
"यही जुर्म हमने, किया सबसे पहले...
तेरा नाम हमने, लिया सबसे पहले..."
वाह ,,,क्या बात है
बहुत सुन्दर
अच्छी लगी ग़ज़ल
बधाई
आभार
behad achchi.hai.
बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है। बहुत खूब।
deepak ji
aapka dil se swagat hai.
aapki nai post ka intajaar hai.
pleasecome soon----:)
poonam
बहुत ही खूबसूरत गज़ल..................
कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कहते हुए....................जो सतह पर रहनाअ चाहता है उसके लिये सतह ...........................और जो डुबकी लगाना चाहता है......उसके लिये असीम गहराई।
एक निवेदन-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
Behad haseen gazal kahee hai aapne! Par ab itne dinon kaa fasala kyon? Jald hee aur likhiye!
बहुत खूबसूरत
सुन्दर!
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