नमस्कार मित्रो....
यूँ तो कल ही एक ग़ज़ल आप सबकी नज़र की है...पर प्रेम दिवस पर सोचा की मैं भी कुछ लिखूं और देखिये एक ग़ज़ल बन गयी है....आप भी पढ़िए और बताइए की कैसी लगी....
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मयकश कई हैं प्रेम के, मय की तलाश में...
साकी है पशोपेश में, किसको शराब दे....
लेकर गुलाब फिर रहे, हैं कितने मनचले....
ऐसे में कोई हम से फिर, कैसे गुलाब ले...
कहने को दिवस प्रेम का, आता है हर बरस...
अरसे से एक फूल है, सुखा किताब में...
शिद्दत कहाँ है, अब कहाँ, है प्यार में वो बात...
पैसा अहम् है, प्यार से, सबके हिसाब में...
मेरे खतों को फाड़ कर, भेजा था एक रोज़...
हमको नहीं गिला है, मिला, क्या जवाब में....
खुद को मिटा के हम तेरे, कुछ काम आ गए...
हस्ती मेरी कुछ काम तो, आई सब़ाब में....
मेरी तो हरेक बात में, रहते हो इस कदर...
देखा कहीं भी तुम रहे, अर्जे आदाब में....
"दीपक" तो उनके प्यार में, बरसों से जल रहा...
दीदार को तरसे हैं हम, और वो हिजाब में...
उनसे नज़र मिलाने की, चाहत रही, मगर...
वो तो नज़र झुकाए ही, आते हैं ख्वाब में....
आपकी टिप्पणियों/सुझावों/मार्गदर्शन का आकांक्षी...
दीपक शुक्ल...
47 comments:
वाह जी वाह क्या बात है, बहुर खूब अर्ज किया है आपने ।
क्या बात है...एक एक शेर लाजबाब है..
बेहतरीन गज़ल.
bahut sundar.
बेहतरीन गज़ल!
कहने को दिवस प्रेम का, आता है हर बरस...
अरसे से एक फूल है, सुखा किताब में...
वाह वाह
क्या बात है .. शुभानअल्लाह बहुत खूब
बहुत सुन्दर ग़ज़ल बन गयी है
बधाई
आभार
''मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से.....'
वाह क्या खूब लिखा है………बहुत बढिया।शानदार गज़ल्।
शिद्दत कहाँ है, अब कहाँ, है प्यार में वो बात...
पैसा अहम् है, प्यार से, सबके हिसाब में...
वर्तमान सन्दर्भों को बखूबी रेखांकित किया है आपने .....हर शेर गहरे अर्थ संप्रेषित करता है
गजब की गजल हे जी
अपनी लाइफ में तो प्रेम है ही नहीं... ना किसी के दीदार तो तरस पाते हैं... ना ही कोई हिजाब में रहता है.... नज़र मिलाने की बात तो दूर रही... कोई ख्वाबों में भी नहीं आती... किसी की इतनी हिम्मत नहीं जो हमारे खतों को फाड़ दे.. तो गिला हम किस बात का करें...
कुल मिला कर जिस्ट यह है कि मैंने पूरी ग़ज़ल पढ़ी... और मुझे इसके भाव बहुत अच्छे लगे...
शिद्दत कहाँ है , अब कहाँ है प्यार में वो बात ...
पैसा अहम् है प्यार से सके हिसाब में ...
ज़माने का यही चलन है क्या कीजे ...प्यार अपने भीतर रहे यही जतन करना होगा !
खुद को मिटा के हम तेरे, कुछ काम आ गए...
हस्ती मेरी कुछ काम तो, आई सब़ाब में....
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी..
आभार...
सारे शेर बहुत सुन्दर बन पड़े हैं....बढ़िया ग़ज़ल
sunadr gazal...
बेहतरीन गज़ल
क्या बात है दीपक जी. बहुत सुन्दर ग़ज़ल है. खासतौर से-
लेकर गुलाब फिर रहे, हैं कितने मनचले....
ऐसे में कोई हम से फिर, कैसे गुलाब ले..
जहां हास्य का पुट लिये है, वहीं-
मेरे खतों को फाड़ कर, भेजा था एक रोज़...
हमको नहीं गिला है, मिला, क्या जवाब में..
गंभीरतम शेर है. बहुत सुन्दर. बधाई.
मेरे खतों को फाड़ कर, भेजा था एक रोज़...
हमको नहीं गिला है, मिला, क्या जवाब में....
kya bat है deepak ji ... lajawaab gazal है ...par prem divas par aisa ehsaas kyin है ...
ye sher bahut hi achhaa laga ...
एक एक शेर लाजबाब है| बेहतरीन गज़ल| धन्यवाद्|
उनसे नज़र मिलाने की, चाहत रही, मगर...
वो तो नज़र झुकाए ही, आते हैं ख्वाब में....
delicacy personified...!!
बहुत सुंदर गज़ल है -
हर शेर बहुत गहरी बात कहता है .
बधाई .
कहने को दिवस प्रेम का, आता है हर बरस...
अरसे से एक फूल है, सुखा किताब में...
शिद्दत कहाँ है, अब कहाँ, है प्यार में वो बात...
पैसा अहम् है, प्यार से, सबके हिसाब में...
बहुत खूब ..अच्छी गज़ल
क्या बात है क्या बात है दीपक जी ....
आपतो मशाल बने जाते हैं दीपक से .....
सरे शेर लाजवाब .....
बहुत खूब .....
मत्ला तो गज़ब का है ...
मयकश कई हैं प्रेम के, मय की तलाश में...
साकी है पशोपेश में, किसको शराब दे....
कहने को दिवस प्रेम का, आता है हर बरस...
अरसे से एक फूल है, सुखा किताब में...
वाह पता नही आज कल के युवाओं की किताबों मे कितने फूल सूख जाते हैं। शुभकामनायें।
बहुत बढिया।..खुबसुरत रचना।
bahut sundar.....
kya baat hai ...har sher lajawaab hai ...
bahut khoobsurat rachnaa
waah - waa !!
प्रशंसनीय.........लेखन के लिए बधाई।
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"हर तरफ फागुनी कलेवर हैं।
फूल धरती के नए जेवर हैं॥
कोई कहता है, बाबा बाबा हैं-
कोई कहता है बाबा देवर है॥"
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क्या फागुन की फगुनाई है।
डाली - डाली बौराई है॥
हर ओर सृष्टि मादकता की-
कर रही मुफ़्त सप्लाई है॥
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होली के अवसर पर हार्दिक मंगलकामनाएं।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
दीपक जी ..
खूब गज़ल लिखी है आपने प्रेम दिवस पर ...दिल के भावों को उतार दिया शब्दों में बधाई आपको .
बहुत खूब लिखा है आपने.......पढ़ कर अच्छा लगा
Bahut badia !
Surjit.
कहने को दिवस प्रेम का, आता है हर बरस...
अरसे से एक फूल है, सुखा किताब में...
वाह ... दीपक जी कमाल का शेर बन पड़ा है ये .. बहुत ही लाजवाब ... सच है सूखा फूल सालों साल पढ़ा रहता है तो एक दिन प्रेम दिवस का क्या मतलब ... गज़ब की गज़ल है ..
इस अद्भुत ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें
नीरज
खूबसूरत गजल क्या बात है बेह्तरीन पोस्ट,
मेरे पोस्ट पर स्वागत है ...
Bahut khub !
Gazal to bahut khoob hai,lekin uske baad to kitne maah beet gaye aapne aur kuchh likha nahee? Aisa kyon?
Each and every line is very beautiful.
बहुत दिनों के बाद आप मेरे ब्लॉग पर आए और आपकी टिप्पणी मिलने पर बेहद ख़ुशी हुई!
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने ! आपके नये पोस्ट का इंतज़ार है!
very nice creation
चलिए आने वाले प्रेम दिवस के नाम हो गयी यह कविता -और लम्बे अरसे से आपने कुछ लिखा ही नहीं !
कल 26/11/2011को आपकी किसी पोस्टकी हलचल नयी पुरानी हलचल पर हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
15 feb k baad se ek v najm nahi??? aascharya hai... bina likhe aap itne din rah kaise gaye... waise gazal achhi hai...
दीपक जी,
आप मेरे ब्लॉग आये और अपने विचारों से मुझे अवगत कराया,आभार
आदरणीय, आपके प्रोत्साहन के लिये आभारी हूं .. शुभकामनाओं सहित ... ।
"Simte Lamhen" is blog pe aapkee kavymay tippanee bahut achhee lagee!Tahe dil se shukriya!
आजकल लिखा क्यूँ नहीं जा रहा है??
…बहुत बढिया।शानदार गज़ल
bahut sundar Rachna ...
bahut khoobsurat
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