नमस्कार मित्रो...
आज एक लम्बे अंतराल के बाद मैं पुनः लौटा हूँ...इस बीच तन से दूर रहा पर मेरा मन यहीं था...आप सबके बीच..इस बीच आप सबके कई भावपूर्ण लेख, कवितायेँ, ग़ज़लें, नज्में मैं नहीं पढ़ और न ही मैं चाह कर भी किसी नयी पोस्ट अथवा यथासंभव कवितामय टिप्पणियों या विशुद्ध भाषा मैं कहें तो अपनी तुकबंदियों के जरिये इतने दिन आप सबसे संवाद न कर सका, जिसका मुझे ह्रदय से दुःख है....
तो लीजिये आज मैं पुनः अपने ब्लॉग को नवजीवन देने का प्रयत्न कर रहा हूँ. अपनी इक नयी कविता के साथ जो मैंने अपने आप पर लिखी है और इस कविता मैं मैंने खुद को कवि समझने की धृष्टता की है, जिसके लिए आप सब से क्षमा चाहता हूँ......यूँ तो सब मुझे जानते ही हैं पर .इस कविता मैं मैंने खुद को समेटने का प्रयत्न किया है..मैं जैसा हूँ, जो हूँ, वो आप सबकी नज़र है...अब आप ही बताएं की मैं अपने प्रयत्न में कितना सफल रहा...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
न छंदों, न गजलों, न गीतों में, रहता..
जो दिल में, है आता, वही मैं हूँ, लिखता..
मैं आठों पहर हूँ, "कविता" के संग ही ...
"कविता" ही, मेरे है, जीवन में बसती..
कभी जाम, मैंने, पिया न है, फिर भी..
नशा ऐसा, मुझको, संभालता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
न कातिल, अदाओं, में रहता हूँ, मैं तो..
न कडवे को, मीठा, सा कहता हूँ, मैं तो..
न सूखे में, बारिश की, बूँदें गिराता..
न सड़कों पे, कागज़ की, नावें चलाता..
है जो कुछ, है जैसा, वही मैं हूँ कहता..
मैं कुछ भी, तो खुद से, बदलता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
न बातों, में मेरे, कोई ऐसा, रस है..
न जीवन, ही मेरा, सहज' और, सरस है..
नियति से, ज्यादा, समय से हो, पहले..
जो मिलता, है उस पर, कहाँ मेरा, बस है..
में जैसा हूँ, जो हूँ, उसी में ही, खुश हूँ..
कहीं देख कुछ भी, मचलता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
जो करता हूँ , दिल से, मैं वो बात करता..
मैं कविता, के जरिये, ही संवाद करता..
न दिल में, मेरे है, शिकायत या शिकवा..
न ही मैं, कभी भी, हूँ फ़रियाद करता..
मैं जीवन, की नैया को, खेता रहा हूँ...
किनारा मिला, पर, निकलता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
कोई मान मुझको, मिला न है, ऐसा..
कविता के बदले, नहीं चाहा, पैसा...
न पुस्तक, कोई मेरी, जारी हुई है..
न चर्चा, ही कोई, हमारी हुई है...
जो है, प्यार पाया, वो है, आप सबका..
मैं ठहरा हुआ हूँ, मैं चलता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
आपके सुझावों/टिप्पणियों/मार्गदर्शन की प्रतीक्षा में....
सादर..
दीपक शुक्ल
आज एक लम्बे अंतराल के बाद मैं पुनः लौटा हूँ...इस बीच तन से दूर रहा पर मेरा मन यहीं था...आप सबके बीच..इस बीच आप सबके कई भावपूर्ण लेख, कवितायेँ, ग़ज़लें, नज्में मैं नहीं पढ़ और न ही मैं चाह कर भी किसी नयी पोस्ट अथवा यथासंभव कवितामय टिप्पणियों या विशुद्ध भाषा मैं कहें तो अपनी तुकबंदियों के जरिये इतने दिन आप सबसे संवाद न कर सका, जिसका मुझे ह्रदय से दुःख है....
तो लीजिये आज मैं पुनः अपने ब्लॉग को नवजीवन देने का प्रयत्न कर रहा हूँ. अपनी इक नयी कविता के साथ जो मैंने अपने आप पर लिखी है और इस कविता मैं मैंने खुद को कवि समझने की धृष्टता की है, जिसके लिए आप सब से क्षमा चाहता हूँ......यूँ तो सब मुझे जानते ही हैं पर .इस कविता मैं मैंने खुद को समेटने का प्रयत्न किया है..मैं जैसा हूँ, जो हूँ, वो आप सबकी नज़र है...अब आप ही बताएं की मैं अपने प्रयत्न में कितना सफल रहा...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
न छंदों, न गजलों, न गीतों में, रहता..
जो दिल में, है आता, वही मैं हूँ, लिखता..
मैं आठों पहर हूँ, "कविता" के संग ही ...
"कविता" ही, मेरे है, जीवन में बसती..
कभी जाम, मैंने, पिया न है, फिर भी..
नशा ऐसा, मुझको, संभालता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
न कातिल, अदाओं, में रहता हूँ, मैं तो..
न कडवे को, मीठा, सा कहता हूँ, मैं तो..
न सूखे में, बारिश की, बूँदें गिराता..
न सड़कों पे, कागज़ की, नावें चलाता..
है जो कुछ, है जैसा, वही मैं हूँ कहता..
मैं कुछ भी, तो खुद से, बदलता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
न बातों, में मेरे, कोई ऐसा, रस है..
न जीवन, ही मेरा, सहज' और, सरस है..
नियति से, ज्यादा, समय से हो, पहले..
जो मिलता, है उस पर, कहाँ मेरा, बस है..
में जैसा हूँ, जो हूँ, उसी में ही, खुश हूँ..
कहीं देख कुछ भी, मचलता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
जो करता हूँ , दिल से, मैं वो बात करता..
मैं कविता, के जरिये, ही संवाद करता..
न दिल में, मेरे है, शिकायत या शिकवा..
न ही मैं, कभी भी, हूँ फ़रियाद करता..
मैं जीवन, की नैया को, खेता रहा हूँ...
किनारा मिला, पर, निकलता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
कोई मान मुझको, मिला न है, ऐसा..
कविता के बदले, नहीं चाहा, पैसा...
न पुस्तक, कोई मेरी, जारी हुई है..
न चर्चा, ही कोई, हमारी हुई है...
जो है, प्यार पाया, वो है, आप सबका..
मैं ठहरा हुआ हूँ, मैं चलता नहीं हूँ...
हूँ "दीपक", मगर, मैं तो जलता नहीं हूँ..
कवि हूँ, कवि सा, मैं लगता नहीं हूँ...
आपके सुझावों/टिप्पणियों/मार्गदर्शन की प्रतीक्षा में....
सादर..
दीपक शुक्ल
53 comments:
पढ़्कर लग तो कवि से ही रहे हैं...:)
वापसी पर स्वागत है आपका.
दीपक जी बहुत अच्छा और सच्चा लिखा है
बधाई
यही आपकी विनम्रता है, पहचान है ... और भावनाओं का प्रकाश है
आप चलेंगे क्या दौड़ेंगे महाराज..बस यूँ ही लिखते रहिए। संवाद शैली में सुंदर छंद के साथ सफल अभिव्यक्ति के लिए बधाई। धमाकेदार वापसी।
Wah! Bahut badhiya!Itna achhe se khud ko samajhna bhee ek kala hee hai!Is me aapkee namrata bhee dikhtee hai!
saadgi se bhara aisa parichay kahin kabhi nahi padha.
nirmal abhivyakti.
wahh...
bahut hi gahari bhavpurn ati uttam rachana hai...
aap ne jis rang shaily me likha hai usase yah or bhi khil kar dikhata hai..
sundar prastuti...
मामा जी ..न सिर्फ आ एक अच्छे कवि और एक अच्छे व्यक्ति हैं बल्कि आपके स्वयं के बारे के प्रकट किये गए विचार बहुत ही सराहनीय हैं|
आपने अपने नाम को नए ही स्वरुप में चरित्राथ कर दिखाया है |
ब्लॉग में वापसी पर आपको मेरी शुभकामनायें ||
Naa naa.. aapne khud ko sahi se aanka nahi.. khud ko underestimate karne ki DHRISHTATA ki h :)
Lekin haan.. kavita k star pe ye ek behatareen rachna h :)
Waah kya khoobsurat rachna sidhe dil tak utar gai.
Blog wapsi par dhero subhkamnayen..!!
Sir, lgta hi aapne apna sara dard aur bhav likh dala. I m not given any credit to u for this type of poem becoz mai janta hu ki aap esse aur achha likh skte hai meri taraf se "aap ho nahi kavi pr kavi ka keeda hai aapke andar jo na rukta hai aur na thharta hai sirf apni pehchan krata hai sbdo ke kalakari se ki aap ho kya"
wah bahut suder likha hi
मैं कुछ भी नहीं हूँ इसलिए ही इतना सब हूँ ...
कविता की सरलता लुभाती है !
मैं आपकी कविता पढ़कर निशब्द हो गई! सुन्दर शब्दों से सुसज्जित भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई! आपकी लेखनी को सलाम ! इस उम्दा कविता के लिए बहुत बहुत बधाई!
क्या बात है दीपक जी. अपने बारे में बहुत बेबाक होकर लिखा है आपने.
न बातों, में मेरे, कोई ऐसा, रस है..
न जीवन, ही मेरा, सहज' और, सरस है..
नियति से, ज्यादा, समय से हो, पहले..
जो मिलता, है उस पर, कहाँ मेरा, बस है..
में जैसा हूँ, जो हूँ, उसी में ही, खुश हूँ..
कहीं देख कुछ भी, मचलता नहीं हूँ...
नियति को सिर-माथे लेना ही तो संतोष-और सुख की कुंजी है. बहुत सुन्दर.
दीपक जी,..
बहुत खूब ..आपने कमाल कर,..दिया
बहुत ही सरल सुंदर भावों से अपने आप
को रचनामे पिरोकर कर प्रस्तुत किया,..
सराहनीय पोस्ट,..
इतना उजाला जले बिन न आता
सुबहा कभी भी न पश्चिम में गाता
ये लफ़्ज़ों में लज्जत, लगे भीगे भीगे
के सहरा में लहरा समंदर का आता
ये दीपक तो जलता सदा तम मिटाने
क्यूँ कहता है दीपक कि जलता नहीं हूँ?
चलिये, निकलिये, मचलिये और जलिये
भावों और शब्दों और गीतों में ढलिए
सुन्दर गीत रचा है दीपक भाई.. सादर बधाई...
है जो कुछ, है जैसा, वही मैं हूँ कहता..
मैं कुछ भी, तो खुद से, बदलता नहीं हूँ...
क्या बात है...बहुत बढ़िया कविता...
Very nicely composed Deepak.
सुन्दर भाव भरी कविता ...बहुत अच्छी है.
bahut sundar bhavon ko dil se likha hai. bahut khub deepak ji
(jiju ji)
सार्थक प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । आभार.।
:)
जो करता हूँ , दिल से, मैं वो बात करता..
मैं कविता, के जरिये, ही संवाद करता..
Bahut khoob ... Aap Kavi hain aur kavita ki baat kavita ke maadhyam se bakhoobi karate hain ... Lajawab rachna hai Deepak Ji .....
दीपक जी एक कवि के रूप में बेहतरीन प्रस्तुति और खुद को पहचनाने का सार्थक प्रयत्न. बधाई.
Very good post.
सहज सरल बहते भाव...... सुंदर पंक्तियाँ
है जो कुछ, है जैसा, वही मैं हूँ कहता..
मैं कुछ भी, तो खुद से, बदलता नहीं हूँ...
bahut pyari bhavnayen prasut ki hain aapne ...dard,prem kavitaon ki utpatti ka parinaam hain..
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
मेरा शौक
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,
आज रिश्ता सब का पैसे से
सुन्दर भाव भरी कविता
'मैं कविता, के जरिये, ही संवाद करता..'
कविता ऐसे ही संवाद करती है... भैया! अविरल बहती कितने ही हृदयों को एक सूत्र में आबद्ध कर देती है कविता... :)
सुन्दर अभिव्यक्ति!
very nice - sundar bhav ..
खुद को परिभाषित करने का द्वंद्व :)
YOur blog is Very Good and thanks for visiting my blog too.
जो हो,जैसे भी हो बहुत खूब हो तुम
कविता मे संवाद जिस दिन किया था
लगा दूसरों से अलग -से हो तुम
प्रतिभा को तुम्हारी उस दिन जाना
दिल के साफ़ हो,उसी पल हमने माना
घर,स्कूल,अपनों मे तुम्हारा ज़िक्र किया था
बहुत प्यार सम्मान से याद तुमको किया था
दीपक हो रौशनी देना काम है तुम्हारा
कविता के संग प्यार से जीवन को जीना
बहुत प्यारे शख्स हो,ऐसे ही रहो तुम
मैं आऊंगी ब्लॉग पर पढ़ने को तुमको
भले कभी आओ या न आओ कभी तुम
जियो,बाबु! इस अंदाज़ के साथ जियो तुम
पास से गुजरे न दुःख कभी तुम्हारे
खुश रहो ,ये लो सब खुशियाँ मेरी तुम
(अरे! मुझे कविता लिखनी नही आती,लिख दी )क्या करूं?ऐसिच हूँ मैं तो हा हा हा
आपकी सुन्दर कविता पढकर मन प्रसन्न हो गया है
दीपक भाई.
सरल शब्दों में बहुत अच्छे भाव प्रेषित किये है आपने.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार आपका.
आप मेरे ब्लॉग पर आये और सुन्दर टिपण्णी भी की,इसके लिए मैं आपका दिल से आभारी हूँ.
आना जाना बनाये रखियेगा जी.
आपकी विनम्र रो भावभीनी प्रस्तुति केलिए आभार | आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है |
deepak ji
bahut hi khoob surat aur saaf goi najar aati hai aapki rachna me.
vastutah ek kavi ka man jaisa hota
hai vah vaisa hi parilalxhit bhi hota hai.
aap nisandeh is iske pre aor dil se haq daar hain.
aapki kavita bahut hi man ko bhai jaise sachchai ka aapke man -darpan ki tarah
punar vapsi par dheron -shubh kamnaayen
poonam
deepak ji
kuchh galat type ho gaya hai
aap nisandeh ek nishhal man ke ek sampurn kavi hain(ye padha jaaye)
deepak ji aap ki tarah main bhi bahut dino baad blog par aai hun so abhi ungliya tyiping me set nahi ho pa rahi hain.par jald hi vo bhi theek ho jayengi isi ummeed ke saath
poonam
good job Deeepak!!!bahut badhiya likha hai!!!
bahut hi umda kavita hai
Aapkee pratikriya to pahunchi,lekin aapkee e-mail ID nahee!
आपकी वापसी का स्वागत है ... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ..आभार सहित शुभकामनाएं ।
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-२'
पर आपका हार्दिक स्वागत है ,दीपक जी..
भावमयी सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई....
मेरे पोस्ट के लिए "काव्यान्जलि" मे click करे
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
वाह, एक कवि हृदय ही अपने भाव इतनी विनम्रता के साथ कह सकता है!
सरल हृदय से बहते निर्मल झरने सी कविता!!
आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।
दीपक जी ...मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
आपकी कविता सरल और सहज है ...
आपके शब्दों का साथ जो मिला
तो खुद में खुद के होने का अहसास सा जगा
माना हमने भी नहीं कभी खुद को कभी
कवि ....पर 'शब्द'...'अर्थ'लिखने से ही
अपनी ये दुनिया बसी ...
sahaj sunder abhivyakti man ki ...
ब्लॉग पर लिखना मेरा भी बहुत ही कम हो गया है.
आप की वापसी देख कर अच्छा लगा..कविता भी बहुत
दिल से लिखी है..भावों को सुन्दर सरल शब्दों में अभिव्यक्त किया है..
.....
मैं कविता, के जरिये, ही संवाद करता..'..बहुत खूब लिखा है..
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
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